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नई दिल्ली: अमेरिका की नीतियों में बदलाव और चीन की अनिश्चित विकास दर के चलते 2025 में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए मुश्किल समय आने वाला है। जेपी मॉर्गन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह बात कही है। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि इमर्जिंग मार्केट बॉन्ड फंड्स से बड़ी मात्रा में पैसा निकाला जा सकता है। यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की गई। यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध छिड़ने की आशंका है।रिपोर्ट के मुताबिक, 2025 में इमर्जिंग मार्केट्स (ईएम) की ग्रोथ दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं चीन और अमेरिका के बीच फंसी रहेगी। अमेरिका की नीतियों में बदलाव से ईएम पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। जेपी मॉर्गन का मानना है कि 2025 में विकासशील देशों की विकास दर घटकर 3.4 फीसदी रह जाएगी, जो इस साल 4.1 फीसदी है। चीन को छोड़कर बाकी ईएम देशों की औसत विकास दर 3.4 फीसदी से घटकर 3.0 फीसदी रहने का अनुमान है।
भारत को नुकसान की आशंका नहीं
रिपोर्ट में भारत का अलग से जिक्र नहीं है। लेकिन, बदली स्थितियों से भारत को ज्यादा नुकसान होने की आशंका नहीं है। अलबत्ता, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन चीन और कई अन्य देशों के साथ टैरिफ की जंग से भारत को अलग रखेगा। इसके संकेत पहले ही मिलने लगे हैं।
जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा असर ईएम फिक्स्ड इनकम मार्केट पर पड़ेगा। डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और रिपब्लिकन कांग्रेस की नीतियों, जैसे टैरिफ, भू-राजनीतिक बदलाव और अमेरिका की घरेलू नीतियों से डॉलर मजबूत होगा और ब्याज दरें बढ़ेंगी। इससे इमर्जिंग मार्केट्स के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी। वॉल स्ट्रीट बैंक का अनुमान है कि अगले साल EM बॉन्ड फंड्स से 5 से 15 अरब डॉलर तक का पैसा निकाला जा सकता है।
अमेरिकी नीतियों का असर सबसे बड़ी चुनौती
जेपी मॉर्गन के विश्लेषकों के अनुसार, EM के लिए सबसे बड़ी चुनौती अमेरिकी नीतियों का असर होगा। हालांकि, फेड की ओर से ब्याज दरें कम करने से कुछ राहत मिल सकती है। 2025 में हार्ड करेंसी वाले सरकारी बॉन्ड की कुल बिक्री 169 अरब डॉलर रहने का अनुमान है, जो 2024 से थोड़ा कम है। लेकिन, बढ़ते पेमेंट के कारण नेट फाइनेंसिंग केवल 1.3 अरब डॉलर रह जाएगी। जबकि इस साल यह 55.2 अरब डॉलर थी। बैंक का मानना है कि 2025 के अंत तक हार्ड करेंसी वाले सरकारी बॉन्ड 4.3% रिटर्न देंगे, जबकि 2024 में अब तक 6.9% रिटर्न मिला है।
जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट में उभरते बाजारों के लिए कई चिंताएं जताई गई हैं। अमेरिका में नीतिगत बदलाव और चीन की धीमी विकास दर का सीधा असर EM पर पड़ेगा। रिपोर्ट में EM बॉन्ड फंड्स से बड़ी मात्रा में पैसा निकलने की आशंका जताई गई है। निवेशकों के लिए चिंता का विषय है। डॉलर के मजबूत होने और ब्याज दरों में बढ़ोतरी से EM के लिए और मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। हालांकि, फेड की ओर से ब्याज दरें कम करने से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। कुल मिलाकर 2025 में EM के लिए चुनौतियां कम नहीं होंगी।
भारत को नुकसान की आशंका नहीं
रिपोर्ट में भारत का अलग से जिक्र नहीं है। लेकिन, बदली स्थितियों से भारत को ज्यादा नुकसान होने की आशंका नहीं है। अलबत्ता, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन चीन और कई अन्य देशों के साथ टैरिफ की जंग से भारत को अलग रखेगा। इसके संकेत पहले ही मिलने लगे हैं।जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा असर ईएम फिक्स्ड इनकम मार्केट पर पड़ेगा। डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और रिपब्लिकन कांग्रेस की नीतियों, जैसे टैरिफ, भू-राजनीतिक बदलाव और अमेरिका की घरेलू नीतियों से डॉलर मजबूत होगा और ब्याज दरें बढ़ेंगी। इससे इमर्जिंग मार्केट्स के लिए चुनौतियां बढ़ेंगी। वॉल स्ट्रीट बैंक का अनुमान है कि अगले साल EM बॉन्ड फंड्स से 5 से 15 अरब डॉलर तक का पैसा निकाला जा सकता है।
अमेरिकी नीतियों का असर सबसे बड़ी चुनौती
जेपी मॉर्गन के विश्लेषकों के अनुसार, EM के लिए सबसे बड़ी चुनौती अमेरिकी नीतियों का असर होगा। हालांकि, फेड की ओर से ब्याज दरें कम करने से कुछ राहत मिल सकती है। 2025 में हार्ड करेंसी वाले सरकारी बॉन्ड की कुल बिक्री 169 अरब डॉलर रहने का अनुमान है, जो 2024 से थोड़ा कम है। लेकिन, बढ़ते पेमेंट के कारण नेट फाइनेंसिंग केवल 1.3 अरब डॉलर रह जाएगी। जबकि इस साल यह 55.2 अरब डॉलर थी। बैंक का मानना है कि 2025 के अंत तक हार्ड करेंसी वाले सरकारी बॉन्ड 4.3% रिटर्न देंगे, जबकि 2024 में अब तक 6.9% रिटर्न मिला है।जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट में उभरते बाजारों के लिए कई चिंताएं जताई गई हैं। अमेरिका में नीतिगत बदलाव और चीन की धीमी विकास दर का सीधा असर EM पर पड़ेगा। रिपोर्ट में EM बॉन्ड फंड्स से बड़ी मात्रा में पैसा निकलने की आशंका जताई गई है। निवेशकों के लिए चिंता का विषय है। डॉलर के मजबूत होने और ब्याज दरों में बढ़ोतरी से EM के लिए और मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। हालांकि, फेड की ओर से ब्याज दरें कम करने से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। कुल मिलाकर 2025 में EM के लिए चुनौतियां कम नहीं होंगी।
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